श्रीसुंदरकांड भावार्थ नवाह्न पारायण (Day 4)

5/21/दोहा          

जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि ।

जब रावण ने प्रभु श्री हनुमानजी से पूछा कि उन्होंने किसके बल पर लंका में प्रवेश कर अशोक वाटिका उजाड़ी और राक्षसों को मारा तो प्रभु श्री हनुमानजी ने बड़ा मार्मिक उत्तर दिया प्रभु श्री हनुमानजी ने अभिमान रहित होकर अपने बल का बखान नहीं किया और बोले कि उन्होंने प्रभु श्री रामजी के बल पर ऐसा किया उन्होंने कहा कि प्रभु श्री रामजी के बल से ही माया ब्रह्मांडों के समूह की रचना करती है, उनके बल से ही सृष्टि का सृजन, पालन और संहार होता है, यहाँ तक कि उनके लेशमात्र बल से ही रावण ने सबको जीतकर अपना विजय अभियान पूरा किया है

 

5/22/4 

भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी ॥

प्रभु श्री हनुमानजी रावण को राजसभा में सीख के रूप में कहते हैं कि उसे सभी भ्रम को छोड़कर भक्तभयहारी प्रभु श्री रामजी का भजन करना चाहिए भक्तभयहारी शब्द का जो प्रभु श्री हनुमानजी ने प्रयोग किया वह बहुत ध्यान देने योग्य है केवल प्रभु ही भक्तों के भय को हरने में सक्षम हैं इसलिए जीवन में जब भी कोई भय सताए तो प्रभु की शरण में तत्काल चले जाना चाहिए

 

5/22/5 

जाकें डर अति काल डेराई ।

प्रभु श्री हनुमानजी रावण से कहते हैं कि काल राक्षसों और समस्त चराचर के जीव को खाने वाला होता है काल का ग्रास होने से कोई भी नहीं बच सकता वह काल भी प्रभु के डर से सदैव अत्यंत डरा हुआ रहता है

 

5/22/दोहा          

प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि । गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि ॥

प्रभु श्री हनुमानजी रावण को कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी अपने शरणागत के परम रक्षक हैं प्रभु में जीवमात्र के लिए स्वभाव से इतनी दया है क्योंकि वे दया के सागर हैं इसलिए रावण को गलती के बाद भी प्रभु की शरण में जाने पर प्रभु उसका अपराध भुलाकर उसे अपनी शरण में रख लेंगे प्रभु का द्वार अपने शरणागत होने वालों के लिए सदा खुला रहता है

 

5/23/1 

राम चरन पंकज उर धरहू ।

प्रभु श्री हनुमानजी का रावण को कितना सुंदर उपदेश है कि प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों को अपने हृदय में धारण करके रखने पर वह अभय होकर लंका का अचल राज्य कर सकता है यह उपदेश जीव मात्र के लिए है कि प्रभु के श्रीकमलचरणों को हृदय में धारण करके निर्भय होकर अपना कर्म करने पर प्रभु के आशीर्वाद से हम सफल होते हैं और सभी विघ्नों से हम बच जाते हैं

 

5/23/2 

राम नाम बिनु गिरा न सोहा । देखु बिचारि त्यागि मद मोहा ॥ बसन हीन नहिं सोह सुरारी । सब भूषण भूषित बर नारी ॥

प्रभु श्री हनुमानजी रावण से कहते हैं कि जो वाणी प्रभु का नाम नहीं लेती उसकी कतई शोभा नहीं है जैसे गहनों से सजी सुंदर स्त्री भी बिना वस्त्रों के शोभा नहीं पाती वैसे ही विधाता की दी हुई वाणी भी बिना प्रभु नाम उच्चारण के शोभा नहीं पाती हमारी वाणी की असल शोभा प्रभु के गुणगान करने में ही है, इस बात को हमें हृदय में दृढ़ता से बैठा लेना चाहिए

 

5/23/3 

राम बिमुख संपति प्रभुताई । जाइ रही पाई बिनु पाई ॥ सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं । बरषि गएँ पुनि तबहिं सुखाहीं ॥

प्रभु श्री हनुमानजी रावण से कहते हैं कि प्रभु से विमुख रहने पर हमारी संपत्ति और प्रभाव रहता हुआ भी चला जाता है प्रभु विमुख होने पर उनका होना और होना एक समान है जैसे जिन नदियों के जल का अगर कोई स्थाई जलस्त्रोत नहीं होता और वे वर्षा के पानी पर ही निर्भर रहती हैं तो वर्षा बीत जाने पर वे सूख जाती हैं, वैसे ही जिन जीवों को प्रभु का आश्रय नहीं है उनकी संपत्ति और प्रभाव टिक नहीं सकते

 

5/23/4 

बिमुख राम त्राता नहिं कोपी ॥

प्रभु श्री हनुमानजी रावण के समक्ष एक बहुत महत्वपूर्ण सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं वे कहते हैं कि जो जीव प्रभु से विमुख है उसकी रक्षा करने वाला जगत में कोई भी नहीं है इसलिए जीव को कभी भी, किसी भी परिस्थिति में प्रभु से विमुख नहीं होना चाहिए प्रभु से विमुख होने पर वह जीव जगत में अकेला रह जाता है और विपत्ति में फंसे बिना नहीं रहता जीवन में सफलता और अनुकूलता के लिए प्रभु के सन्मुख होकर प्रभु का दामन सदैव पकड़कर रखना चाहिए

 

5/25/दोहा          

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास ।

भक्त का प्रभु कैसे मार्गदर्शन करते हैं और कैसे उसकी सहायता करते हैं यह यहाँ देखने को मिलता है लंका जलनी थी तो इसकी प्रेरणा भगवती सरस्वती माता के जरिए प्रभु ने रावण की बुद्धि में भेज दी और रावण ने खुद ही आज्ञा दे दी कि प्रभु श्री हनुमानजी की श्रीपूंछ में आग लगा दी जाए उसे पता नहीं था कि प्रभु श्री हनुमानजी को श्री अग्निदेवजी का वरदान प्राप्त है कि आग उनका बाल भी बाँका नहीं करेगी फिर जब श्रीपूंछ में आग लगी तो प्रभु प्रेरणा से सभी दिशाओं से पवन चलने लगी और वे आग को पूरी लंका में फैलाने में अति सहायक बन गई प्रभु के मार्गदर्शन और प्रभु की सहायता का अगर हमें भरोसा होता है तो वह हमें मिलकर ही रहता है

 

5/26/4 

ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा । जरा न सो तेहि कारन गिरिजा ॥

प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि प्रभु श्री हनुमानजी ने पूरी लंका जला दी पर उनकी श्रीपूंछ का एक बाल भी आग से नहीं जला इसका कारण बताते हुए प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि जिन प्रभु ने श्री अग्निदेवजी को बनाया है, वे श्री अग्निदेवजी उन्हीं प्रभु के दूत प्रभु श्री हनुमानजी की श्रीपूंछ को कैसे जला सकते थे संत एक और कारण बताते हैं कि प्रभु को पता था कि प्रभु श्री हनुमानजी को लंका जलानी है इसलिए प्रभु ने उन्हें बालपन में ही श्री अग्निदेवजी से यह वरदान दिला दिया था कि आग का कोई प्रभाव उन पर कभी नहीं होगा प्रभु अपने भक्त के लिए प्रकृति के नियम को भी बदल देते हैं