5/33/5
सो सब तव प्रताप रघुराई
। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई ॥
प्रभु श्री हनुमानजी ने एक बहुत सुंदर निवेदन प्रभु श्री रामजी से कर दिया । जब भी कोई बड़ाई या प्रशंसा का अवसर आए तो हमें भी यही निवेदन प्रभु से करना चाहिए । प्रभु श्री हनुमानजी ने अपने पराक्रम का तनिक भी श्रेय लेने से इंकार कर दिया और कहा कि यह सब प्रभु श्री रामजी के प्रताप के फल से ही संभव हुआ है । उनके कहने का तात्पर्य यह है कि उनके पराक्रम में उनकी कोई प्रभुता नहीं है, प्रभुता तो केवल और केवल प्रभु की ही है ।
5/33/दोहा
ता कहुँ प्रभु कछु अगम
नहिं जा पर तुम्ह अनु्कूल । तब प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल ॥
प्रभु श्री हनुमानजी के श्रीमुख से दो अकाट्य सिद्धांतों का प्रतिपादन यहाँ पर होता है । पहला सिद्धांत जो प्रभु श्री हनुमानजी प्रभु श्री रामजी के समक्ष कहते हैं वह यह कि जिस जीव पर प्रभु श्री रामजी प्रसन्न होते हैं उस जीव के लिए संसार में कुछ भी करना कठिन नहीं होता है । दूसरा सिद्धांत कि प्रभु श्री रामजी के अनुग्रह और प्रभाव से जीव के लिए असंभव भी तत्काल संभव हो जाता है ।
5/34/1
नाथ भगति अति सुखदायनी
।
प्रभु श्री हनुमानजी परम ज्ञानी, परम बुद्धिमान, सभी विद्याओं के ज्ञाता, सब मर्म को जानने वाले हैं । यह निश्चित है कि वे जो प्रभु श्री रामजी से मांगेंगे उससे हितकारी मांग अन्य कुछ हो ही नहीं सकती । प्रभु श्री हनुमानजी ने प्रभु श्री रामजी से मांगा कि अत्यंत सुखदाई और निश्छल भक्ति उन्हें देने की प्रभु कृपा करें । जब हमारे जीवन में प्रभु से मांगने का अवसर आता है तो हम भक्ति को छोड़कर प्रभु से तुच्छ संसार मांग लेते हैं, यह कितनी बड़ी विडंबना है । प्रभु श्री हनुमानजी ने जो मांगा हमें भी वही प्रभु की निश्छल और निष्काम भक्ति प्रभु से मांगनी चाहिए ।
5/34/2
उमा राम सुभाउ जेहिं
जाना । ताहि भजनु तजि भाव न आना ॥
जगतपिता प्रभु श्री महादेवजी द्वारा जगजननी भगवती पार्वती माता को कहने पर एक बहुत बड़ा सिद्धांत यहाँ पर स्थापित हुआ है । प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि जो करुणामय और कृपानिधान प्रभु का स्वभाव जान लेते हैं उनके जीवन में उन्हें प्रभु भक्ति और भजन को छोड़कर दूसरी कोई बात सुहाती ही नहीं । प्रभु की भक्ति करने वाले के पास दूसरी कोई बात के लिए स्थान ही नहीं रहता । प्रभु के भक्त के हृदय में प्रभु के लिए ही स्थान होता है अन्य किसी विषय के लिए स्थान नहीं होता ।
5/35/2
राम कृपा बल पाइ कपिंदा
।
जब प्रभु श्री रामजी ने लंका के लिए प्रस्थान करने की आज्ञा दी तो वानर, रीछ और भालुओं के झुंड-के-झुंड आ पहुँचे । सबने प्रभु के श्रीकमलचरणों में अपना मस्तक रखकर प्रभु को प्रणाम किया । जैसे ही प्रभु ने अपनी कृपा दृष्टि उन पर डाली सभी के सभी वानर, रीछ और भालू प्रभु की कृपा का बल पाते ही इतने बलवान हो गए मानो पंखवाले बड़े-बड़े पर्वत हो । प्रभु का कृपा बल अद्वितीय होता है जिसकी तुलना किसी भी बल से नहीं की जा सकती क्योंकि उसके जैसा कोई बल है ही नहीं ।
5/35/3
जासु सकल मंगलमय कीती
। तासु पयान सगुन यह नीती ॥
प्रभु श्री रामजी ने जब युद्ध के लिए लंका प्रस्थान का आदेश दिया तो मंगल के सूचक शगुन होने लगे । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु की कीर्ति सब मंगलों से पूर्ण है और प्रभु सब मंगलों के मूल हैं । इसलिए प्रभु की आज्ञा पर शगुन होने लगे तो यह श्रीलीला की मर्यादा मात्र है और इसमें कोई भी आश्चर्य नहीं है ।
5/35/छंद (1)
मन हरष सभ गंधर्ब सुर
मुनि नाग किंनर दुख टरे ॥
जब करोड़ों की संख्या में वानर सेना प्रभु के नेतृत्व में प्रभु का जयकारा करते हुए चली तो रावण का अंत और प्रभु के श्रीहाथों उसका उद्धार होगा यह जान देवतागण, गंधर्व, मुनिगण, नाग सब मन में अति हर्षित हो उठे । वे जान गए कि रावण के अत्याचार से अब वे हरदम के लिए बच जाएंगे और इस तरह उनके दुःख का अब अंत हो जाएगा । उनकी अंतिम आशा प्रभु से ही थी और अब प्रभु वह आशा पूरी करने जा रहे हैं ।
5/38/दोहा
काम क्रोध मद लोभ सब
नाथ नरक के पंथ । सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत ॥
श्री विभीषणजी बड़ी सुंदर बात रावण से कहते हैं । वे कहते हैं कि काम, क्रोध, मद और लोभ नर्क जाने के रास्ते हैं । जो जीव अपने भीतर काम, क्रोध, मद और लोभ रखता है उसका नर्क जाना निश्चित है । नर्क से बचने का एक ही उपाय है कि प्रभु का भजन जीवन में करना जैसे सत्पुरुष निरंतर करते हैं ।
5/39/1
तात राम नहिं नर भूपाला
। भुवनेस्वर कालहु कर काला ॥ ब्रह्म अनामय अज भगवंता । ब्यापक अजित अनादि अनंता ॥
श्री विभीषणजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी मनुष्यों के ही राजा नहीं बल्कि समस्त लोकों के भी स्वामी हैं और काल के भी काल हैं । प्रभु श्री रामजी ऐश्वर्य, यश, श्री, धर्म और ज्ञान के भंडार हैं । प्रभु श्री रामजी विकार रहित, व्यापक, अजेय और अनंत ब्रह्म हैं ।
5/39/2
जन रंजन भंजन खल ब्राता
। बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता ॥
श्री विभीषणजी कहते हैं कि प्रभु अपने सेवकों को सदा आनंद देने वाले हैं । प्रभु दुष्टों का समूह सहित नाश करने वाले हैं । प्रभु धर्म और श्री वेदजी की रक्षा करने वाले हैं ।