श्रीसुंदरकांड भावार्थ नवाह्न पारायण (Day 2)

5/5/1   

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा हृदयँ राखि कौसलपुर राजा गरल सुधा रिपु करहिं मिताई गोपद सिंधु अनल सितलाई

जब प्रभु श्री हनुमानजी लंका में प्रवेश करते हैं तो लंकिनी उनसे निवेदन करती है कि प्रभु श्री रामजी को हृदय में धारण करके लंका नगर में प्रवेश करे और प्रभु का सब कार्य सिद्ध करे यहाँ एक मर्म की बात यह है कि कोई भी छोटे-से-छोटा या बड़े-से-बड़ा कार्य प्रारंभ करते वक्त हृदय में प्रभु को धारण करके, प्रभु को आगे करके उस कार्य का संपादन करने से प्रभु की कृपा हमें मिलती है जिससे उस कार्य में हम सफल होते हैं प्रभु को हृदय में धारण करके कार्य करने से प्रभु की कृपा मिलती है जिससे हमारे सामने आया विष अमृत का फल देता है, हमारे शत्रु मित्र समान व्यवहार करते हैं, विशाल समुद्रदेवजी गौ-माता के खुर के बराबर छोटे हो जाते हैं और श्री अग्निदेवजी हमें शीतलता का अनुभव कराते हैं सारांश यह है कि सभी असंभव संभव हो जाते हैं

 

5/5/2   

गरुड़ सुमेरु रेनू सम ताही । राम कृपा करि चितवा जाही ॥

प्रभु जिसको अपनी कृपा दृष्टि से एक बार देख लेते हैं उसके लिए सुमेरु जैसा विशाल पर्वत रज के कण के समान हो जाता है प्रभु की कृपा दृष्टि में आने के बाद उस जीव के लिए सब संभव हो जाता है और कुछ भी असंभव नहीं रहता जीव अपने पुरुषार्थ से वह नहीं कर सकता जो प्रभु की एक कृपा दृष्टि के फल से वह करने में सक्षम हो जाता है इसलिए जीवन में प्रभु प्रिय बनकर प्रभु की कृपा दृष्टि अर्जित करने का प्रयास करना चाहिए

 

5/5/दोहा            

रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ । नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराइ ॥

जब प्रभु श्री हनुमानजी भगवती सीता माता की खोज में लंका में घूम रहे थे तो उन्हें एक जगह एक भवन में प्रभु का एक अलग मंदिर बना हुआ दिखाई दिया उस मंदिर में प्रभु श्री रामजी के धनुष बाण के श्रीचिह्न अंकित थे और भगवती तुलसी माता के नवीन पौधों के समूह थे असुरों के नगर में यह देखकर प्रभु श्री हनुमानजी बहुत हर्षित हो गए और उन्होंने अनुमान लगाया कि यह निश्चित ही किसी सज्जन पुरुष का भवन है हमारी सज्जनता की पहचान धन, संपत्ति, वैभव से नहीं होती अपितु प्रभु के लिए हमारे घर में सर्वोपरि स्थान आरक्षित किया हुआ है कि नहीं इस बात से होती है जिस घर में प्रभु को सर्वोपरि स्थान दिया जाता है प्रभु श्री हनुमानजी की कृपा दृष्टि उस घर पर सदैव रहती है

 

5/6/2   

राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा । हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा ॥

जब लंका में भगवती सीता माता की खोज कर रहे प्रभु श्री हनुमानजी श्री विभीषणजी के भवन पहुँचे तो प्रातः का समय था श्री विभीषणजी तब निद्रा से उठे थे और उठते ही उन्होंने श्रीराम नाम का स्मरण और उच्चारण किया प्रभु के नाम का उच्चारण जब प्रभु श्री हनुमानजी ने सुना तो वे हृदय से बहुत हर्षित हुए और श्री विभीषणजी को उन्होंने सज्जन जाना प्रभु का स्मरण और प्रभु नाम का उच्चारण अपने आप ही बिना प्रयास के सुबह-सुबह उठते ही हो जाए तो उस जीव को पुण्यात्मा मानना चाहिए क्योंकि यह प्रभु के नित्य अनुसंधान और प्रभु कृपा बिना संभव नहीं होता

 

5/6/दोहा            

तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम । सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम ॥

जब प्रभु श्री हनुमानजी श्री विभीषणजी से ब्राह्मण रूप में मिले तो श्री विभीषणजी ने उन्हें प्रणाम किया और पूछा कि क्या वे प्रभु श्रीहरि के कोई भक्त हैं या स्वयं प्रभु ही हैं जो उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ करने आए हैं तब प्रभु श्री हनुमानजी ने पूरी श्रीराम कथा कहकर अपना नाम बताया, जिसे सुनते ही दोनों के शरीर पुलकित हो गए और दोनों के मन प्रेम और आनंद से भर गए प्रभु श्री हनुमानजी को जब भी कोई जीव प्रभु में तन्मय हुआ दिखता है तो वे बहुत हर्षित होते हैं और उस जीव पर कृपा करके उसकी भक्ति को प्रगाढ़ करते हैं और उसका प्रभु मिलन करवा देते हैं

 

5/7/3   

सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती । करहिं सदा सेवक पर प्रीती ॥

श्री विभीषणजी ने अपनी बात और दशा बताकर प्रभु श्री हनुमानजी से पूछा कि क्या उन्हें अनाथ जान प्रभु श्री रामजी उन पर कृपा करेंगे फिर उन्होंने कहा कि उन्हें भरोसा है कि प्रभु कृपा करेंगे क्योंकि पहली कृपा तो वे यह अनुभव कर रहे हैं कि निशाचरों की भूमि लंका में भी उन्हें प्रभु श्री हनुमानजी के दर्शन हो गए तब प्रभु श्री हनुमानजी ने कहा कि यह उनके प्रभु की रीति है कि वे अपने सेवक से सदा और निरंतर प्रेम किया करते हैं प्रभु अपने सेवकों से प्रेम और उन पर कृपा करने में कभी नहीं चूकते

 

5/8/1   

जानतहूँ अस स्वामि बिसारी । फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी ॥

प्रभु श्री हनुमानजी एक बहुत मर्म की बात श्री विभीषणजी से कहते हैं वे प्रभु श्री रामजी की कृपा की बात बताकर और प्रभु का कोमल स्वभाव बताकर कहते हैं कि ऐसे स्वामी को भूलकर जो संसार के विषयों के पीछे भटकते हैं वे निश्चित विपत्ति में पड़ते हैं और दुःखी होते हैं प्रभु को जीवन में बिसारना ही दुःख का एकमात्र कारण है जो करुणानिधान प्रभु को भूल जाते हैं उन जीवों को दुःख आकर घेर लेते हैं

 

5/13/3 

रामचंद्र गुन बरनैं लागा । सुनतहिं सीता कर दुख भागा ॥

जब लंका की अशोक वाटिका में प्रभु श्री हनुमानजी पहुँचे तो उन्होंने भगवती सीता माता को देखकर उन्हें मन-ही-मन प्रणाम किया प्रभु के वियोग के कारण दुःखी अवस्था में उन्हें देखकर प्रभु श्री हनुमानजी प्रभु श्री रामजी के सद्गुणों का कथारूप में वर्णन करने लगे जिसको सुनने से भगवती सीता माता को अपार हर्ष हुआ और उनका दुःख दूर हुआ इतने समय बाद प्रभु के विषय में उन्हें सुनने को मिला इसलिए वे मन लगाकर प्रभु की कथा सुनने लगी प्रभु श्री हनुमानजी ने अवसर देखकर आदि से लेकर सारी कथा माता को कह सुनाई जिससे माता मधुर यादों में खो गई और दुःख रहित हुई यह सिद्धांत है कि प्रभु का गुणानुवाद सुनने से जीव के दुःख दूर होते हैं

 

5/13/5 

राम दूत मैं मातु जानकी । सत्य सपथ करुनानिधान की ॥

जब प्रभु श्री हनुमानजी ने मधुर वाणी में प्रभु की कथा माता को सुनाई तो माता ने कहा कि वे कथा कहने वाले को देखना चाहतीं हैं तब प्रभु श्री हनुमानजी वानर रूप में उनके सामने प्रकट हुए और माता को उनका विश्वास हो इसलिए उन्होंने कहा कि करुणानिधान प्रभु श्री रामजी की शपथ से वे कहते हैं कि वे प्रभु श्री रामजी के दास और दूत हैं प्रभु ने ही उन्हें माता की खोज में अपनी अंगूठी निशानी के रूप में देकर भेजा है भगवती सीता माता प्रभु श्री रामजी को करुणानिधान के संबोधन से पुकारती थी इसलिए जब वह संबोधन उन्होंने प्रभु श्री हनुमानजी के द्वारा सुना तो वे समझ गई कि यह गोपनीय बात प्रभु का कोई निज अंतरंग दास ही जान सकता है इस तरह प्रभु श्री हनुमानजी ने माता के हृदय में अपना विश्वास जमा लिया

 

5/13/दोहा          

कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास ॥ जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास ॥

प्रभु श्री हनुमानजी प्रभु के अनन्य भक्त और दास हैं और सकल गुणनिधान है और ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं पराई जगह लंका में पहली बार मिलने पर भी उन्होंने भगवती सीता माता के अंतःकरण में अपने लिए विश्वास निर्माण कर साबित किया कि क्यों प्रभु ने उन्हें ही मुद्रिका देकर भगवती सीता माता की खोज के लिए चुना था प्रभु श्री हनुमानजी के द्वारा श्रीराम कथा का संक्षिप्त में निरूपण एवं प्रेम युक्त वचन सुनकर भगवती सीता माता के मन में पूर्ण विश्वास हो गया कि प्रभु श्री हनुमानजी मन, वचन और कर्म से प्रभु श्री रामजी के अनन्य दास हैं